उत्तराखंड टनल: 17 दिनों के बाद, इंतजार का समाप्त, सुरंग से सभी मजदूर सकुशलता से बाहर निकाले गए
उत्तराखंड टनल: 28 नवंबर 2023 उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में स्थित सिल्कयारा की निर्माणाधीन सुरंग में पिछले 17 दिनों से फंसे 41 मजदूरों को अंत में बाहर निकाला गया है।
तस्वीरों के अनुसार, इन मजदूरों को एम्बुलेंस से सुरक्षित तरीके से बाहर निकाला गया है।
इन मजदूरों को चिन्यालीसौड़ के स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया है, जहाँ डॉक्टर्स की निगरानी में रखा जाएगा।
सरकार ने बताया है कि इस मजदूरों के बचाव अभियान में राज्य और केंद्र सरकार की एजेंसियों के साथ-साथ सेना, विभिन्न संगठन और विश्व के प्रमुख टनल विशेषज्ञों ने सहयोग किया है।
रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ, एसडीआरएफ, बीआरओ, आरवीएनएल, एसजेवीएनएल, ओएनजीसी, आईटीबीपी, एनएचएआईडीसीएल, टीएचडीसी, उत्तराखंड राज्य शासन, जिला प्रशासन, भारतीय थल सेना, वायुसेना, और अन्य संगठनों, अधिकारियों, और कर्मचारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया साइट एक्स पर अपनी राय दी, ”17 दिनों की मेहनत और संघर्ष के बाद उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में फंसे 41 श्रमिकों को बाहर निकाला जा रहा है।
तस्वीरों में दिख रहा है कि कुछ मजदूरों को स्ट्रेचर पर लिटाकर पाइपों के जरिए बाहर निकाला जा रहा है।
इन स्ट्रेचरों के नीचे पहिए लगे हैं, ताकि उन्हें पाइप के अंदर से आसानी से निकाला जा सके।
यह हादसा लगभग 17 दिन पहले दिवाली के दिन हुआ था, जब ये मजदूर सुरंग में काम कर रहे थे।
लेकिन सुरंग के ढहने के साथ ही, मजदूर 70 मीटर लंबी मलबे की दीवार के पीछे फंस गए।
इसके बाद, मलबे को हटाने की प्रक्रिया धीरे-धीरे शुरू हुई, जिसमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों की सहायता ली गई।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को बताया कि सुरंग में पाइप डालने का काम पूरा हो गया है। इसके साथ ही, स्वास्थ्य केंद्र के अंदर की एक तस्वीर ने दिखाया कि मजदूरों के लिए तैयार किए गए बेड।
केंद्रीय मंत्री जनरल वीके सिंह (सेवानिवृत्त) और पीएमओ के पूर्व सलाहकार भास्कर खुल्बे भी वहां मौजूद हैं, जो हाल ही में सिल्क्यारा सुरंग से बाहर निकले हैं।
सुरंग के बाहर एम्बुलेंस, स्ट्रेचर, और डॉक्टर भी तैयार खड़े हैं। मजदूरों को बाहर निकालने पर, उन्हें तत्पर डॉक्टरों की निगरानी में रखा जाएगा।
इससे पहले, बचाव अभियान से जुड़ी ज़िम्मेदारियों की देखभाल में शामिल अतिरिक्त सचिव (तकनीकी, सड़क, और परिवहन) महमूद अहमद ने बताया कि “कुल 86 मीटर के अंदर वर्टिकल ड्रिलिंग 44 मीटर तक पूरी हो गई है। हर विकल्प पर काम लगातार जारी है और टीएचडीएस ने सुबह से सात ब्लास्ट किए हैं.”
उन्होंने इसके साथ ही हॉरिज़ोन्टल ड्रिलिंग से जुड़ी जानकारी भी साझा की है।
उन्होंने कहा, “हॉरिज़ोन्टल ड्रिलिंग 55.3 मीटर तक पहुंच गई है। हम यह काम मैन्युअली कर रहे हैं, ताकि हम मलबा निकाल सकें और फिर पाइप लगा सकें। अभी और पांच मीटर का काम बाकी है। सब कुछ ठीक रहता है तो शाम तक अच्छी खबरें मिल सकती हैं।
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उत्तराखंड टनल: बचाव अभियान के दौरान क्या क्या हुआ?
उत्तराखंड टनल: सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचाव अभियान लगभग 16 दिन पहले आरंभ हुआ था।
इस प्रक्रिया में शामिल बचाव कर्मियों को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पहले, बचाव दल ने हॉरिजॉन्टल खुदाई की शुरुआत की, जिससे सीधे रास्ते से सुरंग में फंसे मजदूरों तक पहुंचा जा सकता था।
लेकिन इस प्रक्रिया में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि मलबे में सरिए और मिश्रित धातु से टकराने की वजह से ऑगर मशीन को नुकसान हुआ। अंत में, मशीन टूट गई और उसे बाहर निकालने के लिए लंबा प्रयास किया गया।
इसके बाद, वर्टिकल खुदाई शुरुआत हुई, लेकिन इसके साथ ही हॉरिजॉन्टल खुदाई की प्रक्रिया में अंतिम पांच मीटर की खुदाई मैनुअली से की गई।
इस वजह से अब मजदूरों को मैनुअली से बाहर निकालने की संभावनाएं प्रबल हो रही हैं।
ऑगर मशीन से हुई खुदाई
उत्तराखंड टनल: इस प्रक्रिया में, ऑगर मशीन की खुदाई प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए एक हॉरिज़ॉन्टल खुदाई मशीन का उपयोग किया गया। इस मशीन के माध्यम से, भूमि में खुदाई की जा रही है।
हिंदी में, ऑगर मशीन को ‘बरमा मशीन’ या ‘ड्रिलिंग मशीन’ भी कहा जाता है। जयपुर की जेबी इंडस्ट्रीज ने कई सालों से ऑगर मशीनों का निर्माण किया है। कंपनी के सीनियर सेल्स पर्सन, मुकेश कुमावत, ने बताया कि वे उत्तराखंड में चल रहे रेस्क्यू ऑपरेशन को सकारात्मक रूप से नजरअंदाज कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि ऑगर मशीन, वर्टिकल और हॉरिज़ॉन्टल दोनों दिशाओं में छेदन के कार्यों में काम आती है। इसमें एक पाइप के ऊपर गोल-गोल प्लेट्स लगे होते हैं और आगे की दिशा में, यानी मुंह की ओर, कटिंग एज होता है, जो मिट्टी या चट्टान को काटने के काम आता है।
कुमावत व्याख्या करते हैं, “जब मशीन के मुंह पर लगा कटिंग एज चट्टान को काटने में काम करता है, तो गोल-गोल दिखने वाली प्लेट्स मलबे को बाहर खींचने का काम करती हैं।”
“ड्रिल करने के लिए जिस कटिंग एज का इस्तेमाल होता है, उसे बनाने के लिए टंगस्टन कार्बाइड का उपयोग किया जाता है, क्योंकि इससे सख्त सतह को काटना आसान होता है।”
“ऑगर मशीन में जीपीएस और इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग सिस्टम भी स्थापित होता है, ताकि ऑपरेटर सटीक कोण पर किसी सतह में छेद कर सके।
कितनी ज़रूरी होती है ऑगर मशीन
उत्तराखंड टनल: वर्तमान में जो भी टनल की तस्वीरें सार्वजनिक हो रही हैं, उनमें सिल्कयारा की ओर खुलने वाला हिस्सा दिखाई दे रहा है।
सिल्कयारा से बड़कोट के बीच बनाई जा रही है एक 4 किलोमीटर से अधिक लंबी सुरंग, जिसमें दिवाली के दिन एक घटना हुई जिसके बाद 41 श्रमिक सिल्कयारा गेट से करीब 250 मीटर के भीतर थे। अचानक, उनके सामने एक 70 मीटर का मलबा गिरा और वे उसी टनल में फंस गए।
पहले मलबे को सामान्य खुदाई से बाहर निकाला जा रहा था, लेकिन इससे यह खौफ था कि कहीं ऊपर से और मलबा ना गिरे, इसलिए ऑगर मशीन का सहारा लिया गया।
ऑगर मशीन ने मलबे में ड्रिल करके करीब 60 मीटर तक एक रेस्क्यू पाइप फिट किया है, जिससे श्रमिकों को बाहर निकाला जाएगा। यह पाइप करीब 900 एमएम चौड़ा है।
जब यह मशीन ड्रिल करती है, तो शोर कम करती है, जिससे सतह को कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इसलिए, ऊपर से मलबा दरकने की आशा कम है।
ऑगर मशीन से करीब 95 फीट तक भूमि के अंदर छेद किया जा सकता है। इसके बाद, ऑगर में एक्सटेंशन रोड लगानी पड़ती है।”
जानिए कब क्या हुआ
उत्तराखंड टनल: एक नजर हादसे के पूरे घटनाक्रम पर –
12 नवंबर – सुरंग का एक हिस्सा गिरा और 41 मज़दूर उसमें फंसे गए
13 नवंबर – मज़दूरों से संपर्क स्थापित हुआ और एक पाइप के ज़रिए उनतक ऑक्सीजन पहुंचाने की कोशिश की गई
14 नवंबर – 800-900 मिलीमीटर डायमीटर के स्टील पाइप को ऑगर मशीन के ज़रिए मलबे के अंदर डालने की प्रयास किया गया. लेकिन मलबे के लगातार गिरते रहने से दो मज़दूरों को थोड़ी चोट भी आई…इस दौरान मज़दूरों तक खाना, पानी, आक्सीजन, बिजली और दवाएं पहुंचीं
15 नवंबर – ऑगर मशीन से पूरी तरह संतुष्ट नहीं होने की वजह से एनएचआईडीसीएल ने नई स्टेट ऑफ़ द आर्ट ऑगर मशीन की मांग की जिसे दिल्ली से एयरलिफ्ट किया गया
16 नवंबर – नई ड्रिलिंग मशीन ने काम शुरू किया
17 नवंबर – लेकिन इसमें भी कुछ रुकावट आई जिसके बाद इंदौर से एक दूसरी ऑगर मशीन मंगाई गई. लेकिन फिर काम रोकना पड़ा.
18 नवंबर – पीएमओ के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने एक नई योजना पर काम शुरू करने का आदेश दिया
19 नवंबर – ड्रिलिंग बंद रही और इस दौरान केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बचावकार्यों का ज़ायज़ा लिया.
20 नवंबर – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बचाव कार्यों का जायज़ा लेने के लिए सीएम धामी से फ़ोन पर बात की.
21 नवंबर – मज़दूरों का वीडियो पहली बार सामने आया
22 नवंबर – 800
एमएम की मोटी स्टील पाइप लगभग 45 मीटर तक पहुंची. लेकिन ड्रिलिंग में शाम के समय कुछ बाधा आ गई.
23 नवंबर – दरार दिखने के बाद ड्रिलिंग को फिर से रोकना पड़ा
24 नवंबर – शुक्रवार को दोबारा ड्रिलिंग शुरू हुई लेकिन फिर रोकनी पड़ी
25 नवंबर – मैनुअल ड्रिंगिग शुरू हुई
26 नवंबर – सिल्कयारा-बारकोट सुरंग के ऊपर पहाड़ी पर वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई.
27 नवंबर – वर्टिकल खुदाई जारी रही
28 नवंबर – दोपहर में रेस्क्यू टीम के लोग मज़दूरों तक पहुंचे और सुरंग में पाइप डालने का काम पूरा हुआ. मज़दूरों को सुरक्षित बाहर निकालना शुरू किया गया.”