ऐसा कौन सा गांव है जहां पर भारत का संविधान नहीं माना जाता है?
भारत के इस खूबसूरत गांव में नहीं चलते भारतीय कानून, यहां अपना राजा, अपनी सरकार और अपने हैं कानून!
आज के आधुनिक भारत मे लोगो को इस बात पर यकीन कर पाना मुश्किल होगा लेकिन यही सत्य है। मलाणा के लोग आज भी भारत के संबिधान को नही मानते और अपनी हजारो साल पुरानी परम्पराओं को मानते है और उन्हीं के अनुसार यहां का शासन चलता है।
हजारो साल पहले बनाये गए नियमों को यहाँ के गाँव वासियों ने अपने कबीले के ऊपर एक संसदीय प्रणाली के तहत लागू किया हुआ है।
माना जाता है कि दुनियाभर में लोकतंत्र की सुरुआत यही है हुई थी
मलाणा के लोकतंत्र और ससदीय व्यवस्था के बारे में सम्पूर्ण जानकारी
मलाणा गांव में दो सदन है छोटा सदन और एक बड़ा सदन।
बड़े सदन में गांव के मंदिर के पुजारी जिनको गुर कहते है के अलाबा 8 सदस्य होते है। 8 सदस्यों का गांव बसी चुनाब करते है। 3 सदस्य स्थाई होते है जिनमे कारदार पुजारी और गुर सामिल है। कुल 11 सदस्य जो बड़े सदन में होते है। किसी की मृत्यु होने पर दोबारा सदन का गठन किया जाता है।
छोटा सदन इस मे गांव के हर घर का बड़ा बजुर्ग ब्यक्ति सदस्य होता है।
सिर्फ़ सदन ही नहीं बल्कि मलाणा गांव का अपना प्रशासन भी है. कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं.
यहाँ लोगो ने अपने थानेदार को भी नियुक्त किया होता है। जिसमे सरकार भी कोई दख़ल नही देती।
न्याय व्यवस्था क्या कहती है ?
किसी भी लड़ाई झगड़े को निपटाने के लिए चौपाल बुलाई जाती है। जिसमे 11 सदस्यों की सदन ऊपर बैठती है। अन्य जमीन पर बैठते है। मलाणा गांव के लोग अपने सभी मामलों का निदान देवता के आदेश और पम्पराओ के अनुसार गांव की चौपाल में ही करते है।
यदि किसी समस्या का निदान नही हो पाए तो उसे स्थानीय देवता जमलू के अधीन कर दिया जाता है।
अंतिम होता है जमलू देवता का फैसला
मलाणा गांव के लोग जमलू ऋषि को अपना देवता मानते हैं. जमलू देबता के पुजारी को गुर कहते है इन्ही का फैसला सच्चा और अंतिम माना जाता है।
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