भारतीय रेलवे सभी ट्रेनों से पैंट्री कार क्यों हटाना चाहती है? सरकार आखिर क्या चाहती है?
क्या आपको पता है कि कोरोनो लाकडाउन के बाद जब भारतीय रेलवे ने कुछ ट्रेन चलायीं तो उनमें पेन्ट्री कार नहीं लगायीं क्योंकि कोरोना की वजह से फूड सप्लाई नहीं करना था। इससे रेलवे को अपने आप एक आईडिया मिल गया कि क्यों न पैन्ट्री कार को हटाकर उसकी जगह एक वातानुकूलित 3 टायर कोच लगा दिया जाए। इससे रेलवे को ₹1400 करोड़ का प्रतिवर्ष अधिक रेवेन्यू मिलेगा। वर्तमान में 350 जोड़ी यानि 700 लम्बी दूरी की ट्रेन में पेन्ट्री कार लगती हैंं। लेकिन इसके पीछे क्या वाजिब कारण है ? आइये इस लेख में हम देखते हैं।
कोरोना के बाद जब सर्विस नारमल होंगी तब यात्रियों को रेलवे स्टेशन पर मौजूद बेस किचिन में बना हुआ पैकेज्ड कैसरोल मील्स दिया जायेगा। इसके लिए कुछ और रेलवे स्टेशनों पर बेस किचिन खोले जायेंगे। इससे हाईजीन भी सुधरने की उम्मीद है क्योंकि छोटी सी पेन्ट्री कार में सफाई नहीं रह पाती। बेस किचिन काफी बड़े एरिया में होते हैं और वहाँ आधुनिक मशीनों से खाना बनाया और पैक किया जा सकता है। लेकिन कोरोना के बाद बिलकुल उल्टा होने लगा है लगा है।
आइये आपको बेस किचिन के कुछ चित्र –
कुछ और सेवाएं जो बन्द की जायेंगी :—
- वातानुकूलित कोच में बैड रोल (कम्बल, बैडशीट, फेस टावल और पिलो) भी कोरोनाकाल में अभी नहीं दिए जा रहे हैं। इसके बदले कुछ बड़े रेलवे स्टेशनों पर बैडशीट और पिलो बेचे जा रहे हैं और आगे भी बेचे जाते रहेंंगे। जो घर से न लेकर आया हो, वह चाहे तो खरीद सकता है। यही सिस्टम आगे भी लागू रहेगा। यह यात्रियों के हित में है क्योंकि कम्बल 15–20 दिन में धुलता था, उसी को दसियों यात्री, जिनमें बीमार यात्री भी होते थे, प्रयोग करते थे, जो हाईजीनीकली उचित नहीं था।
- वातानुकूलित 3 टायर से तो पर्दे पहले ही हटा दिए गये थे। अब वातानुकूलित 2 टायर से भी हटा दिए जाएंगे क्योंकि हाईजीनीकली वह भी ठीक नहीं थे। शायद महीने में एक बार धुलते हों। भारत में ऐसे यात्री भी होते हैं जो दूसरे की आँख बचाकर इन्हीं पर्दो से जूते की धूल भी साफ कर लेते हैं और खाना खाकर चिकने हाथ भी पोंछ देते हैं। इसलिए यात्रियों को इस बदलाव का भी स्वागत करना चाहिए।
दोस्तों उम्मीद करता हूँ आपको यह जानकारी पसंद आयी होगी। अगर आपको कोई सवाल हो तो कमेंट कर सकते हैं। धन्यवाद।।