एजुकेशनटेक्नोलॉजी

मेड इन इंडिया तोप 48 किमी की रेंज, माइनस 30 से लेकर 75 डिग्री तापमान तक में सटीक फायर

15 अगस्त की सुबह प्रधानमंत्री लाल किले पर जैसे ही तिरंगा फहराएंगे, राष्ट्रगान की धुन बजने लगेगी। इसके साथ शुरू होगी 21 तोपों की सलामी। कुल 52 सेकंड के राष्ट्रगान के दौरान 21 तोपों की सलामी दी जाएगी।

पिछले 74 सालों से यह काम ब्रिटेन में बनी 7 तोपों से 21 खास गोले दागकर किया जाता है। गोले खास इसलिए क्योंकि ये गोले ब्लैंक होते हैं यानी इनसे सिर्फ धमाके होंगे। इन तोपों का नाम है 25 पाउंडर गन। मतलब, ऐसी तोप जिससे 25 पाउंड यानी करीब 11.5 किलो का गोला दागा जा सके।

इस बार 74 बरस पुरानी ये तस्वीर बदली हुई होगी। पहली बार इन 25 पाउंडर ब्रिटिश तोपों के साथ देश में बनी ATAGS यानी Advanced Towed Artillery Gun System की गूंज भी सुनाई देगी।

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ATAGS यानी Advanced Towed Artillery Gun System क्या है?

जैसा कि इसके नाम Advanced Towed Artillery Gun System से जाहिर है कि यह टोव्ड गन यानी ऐसी तोप है जिसे ट्रक से खींचा जाता है। हालांकि यह गोला दागने के बाद बोफोर्स की तरह कुछ दूर खुद ही जा सकती है। यानी गोला दागो और भागो । इस तोप का कैलिबर 155 एमएम है। मतलब यह कि इस आधुनिक तोप से 155 एमएम वाले गोले दागे जा सकते हैं।

ATAGS को हॉवित्जर भी कहा जाता है। हॉवित्जर यानी छोटी तोपें। अब आप सोचेंगे कि इतनी बड़ी तोप को छोटा कैसे कहा जा सकता है। दरअसल, दूसरे विश्व युद्ध और उसके बाद तक युद्ध में बहुत बड़ी और भारी तोपों को इस्तेमाल होता था। इन्हें लंबी दूरी तक ले जाने और ऊंचाई पर तैनात करने में काफी मुश्किलें होती थीं। ऐसे में हल्की और छोटी तोप बनाई गईं, जिन्हें हॉवित्जर कहा गया।

ATAGS को किसने बनाया है, इसे देशी बोफोर्स क्यों कहा जा रहा है?

ये तोप भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं संगठन यानी DRDO की पुणे स्थित लैब Armament Research and Development Establishment (ARDE) ने भारत फोर्ज लिमिटेड, महिंद्रा डिफेंस नेवल सिस्टम, टाटा पॉवर स्ट्रैटेजिक और ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड ने डेवलप किया है।

2013 में इसके डेवलपमेंट का काम शुरू हुआ था और पहला कामयाब टेस्ट 14 जुलाई 2016 में किया गया।

इस तोप का इस्तेमाल और खासियत काफी कुछ बोफोर्स तोप से मिलती-जुलती हैं, इसलिए इसे देशी बोफोर्स भी कहा जा रहा है।

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इस तोप की खासियत क्या-क्या हैं?

 जैसा हमने ऊपर आपको बताया था कि इस तोप से 155 एमएम के गोले दागे जा सकते हैं। इसके साथ ही इस तोप से दागे जाने वाले गोलों की रेंज 48 किलोमीटर है, जबकि उसी गोले को बोफोर्स तोप 32 किमी दूर तक दाग सकती है। ये 155 एमएम की कैटेगरी में दुनिया में सबसे ज्यादा दूरी तक गोले दागने में सक्षम है। यह तोप -30 डिग्री सेल्सियस से लेकर 75 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर सटीक फायर कर सकती है।

इसकी 26.44 फुट लंबी बैरल से हर मिनट 5 गोले दागे जा सकते हैं। इसमें आटोमैटिक राइफल की तरह सेल्फ लोड सिस्टम भी है। यानी इसके गोलों को लोड करने का सिस्टम ऑटोमैटिक है। इस तोप से निशाना लगाने के लिए थर्मल साइट सिस्टम लगा है। मतलब यह है कि रात में भी इससे निशाना लगाया जा सकता है। वायरलेस कम्युनिकेशन की खूबी मौजूद है।

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इस तोप का कहां-कहां परीक्षण किया गया?

14 जुलाई 2016 को 155/52 कैलिबर की ATAGS का पहला सफल टेस्ट हुआ। इसके बाद सितंबर 2020 में तोप के यूजर ट्रायल में बैरल फटने से चार कर्मचारी घायल हो गए। नवंबर 2020 में परीक्षण के बाद दोबारा यूजर ट्रायल की अनुमति दी गई। जून 2021 में 15,000 फीट (4,600 मीटर) की ऊंचाई पर ATAGS तोप का सफल परीक्षण किया गया। 26 अप्रैल 2022 से 3 मई तक पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में एक हफ्ते तक ATAGS का ट्रायल हुआ था।

ट्रायल के दौरान इनीशियल सर्विस गारंटी आवश्यकताओं को दोबारा वेरिफाई किया गया। तोपों की विश्वस्नीयता साबित करने के लिए 2 सेकेंड की फायरिंग सफलतापूर्वक आयोजित की गई। इस दौरान सटीकता और निरंतरता पर जोर दिया गया। परीक्षण के दौरान धमाकों और इंटेंस टाइम सीरीज का विशेष ध्यान रखा गया। इसके बाद इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटरफेरेंस / इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कम्पैटिबिलिटी (EMI / EMC) और डायरेक्टर जनरल क्वालिटी एश्योरेंस (DGQA) के परीक्षण भी सफल रहे।

 सेना ने ATAGS के वजन में कमी करवाई थी, क्यों?

 2018 में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने 3,365 करोड़ की अनुमानित लागत पर 150 ATAGS तोपों की खरीद के लिए मंजूरी दी थी। सेना को इस कैटेगरी में 1,580 आर्टिलरी गन की जरूरत थी। सेना ने अपनी आवश्यकताओं की तुलना में अधिक वजन के मुद्दे को लेकर आपत्ति जताई थी। सेना चाहती थी कि ATAGS का वजन लगभग 18 टन हो, ताकि इसे पहाड़ों में ले जाया जा सके। इस पर बाद में काम किया गया और सेना की मांग को पूरा किया गया।

ATAGS तोप ऑटोमैटिक मोड फायरिंग और वायरलेस कम्युनिकेशन के अलावा हाई एंगल पर सबसे छोटे मिनिमम डिस्टेंस और रेगिस्तान व पहाड़ी इलाकों में जबर्दस्त प्रदर्शन करने में सक्षम है। ATAGS को सभी इलेक्ट्रॉनिक ड्राइव और पूरी तरह से ऑटोमैटिक बारूद हैंडलिंग सिस्टम के साथ सभी तरह के गोला बारूद को आग लगाने के लिए डिजाइन किया गया है।

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स्वतंत्रता दिवस पर दी जाने वाली 21 तोपों की सलामी में इस तोप को क्यों शामिल किया गया है?

 सरकार मेक इन इंडिया को बढ़ावा देना चाहती है। इसलिए ही पूरी दुनिया के सामने अपनी इस उपलब्धि को लाना चाहती है। इसके लिए लाल किले पर दो हफ्ते से सेना प्रैक्टिस कर रही है।

इससे पहले 26 जनवरी 2017 की परेड में राजपथ पर इस तोप का प्रदर्शन किया गया था। लाल किले पर होने वाले स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में 14 देशों के कैडेट भी आ रहे हैं। इनमें मॉरिशस, अर्जेन्टीना, सेशेल्स, यूएई, मुजैम्बिक, फिजी, अमेरिका, यूके, इंडोनेशिया, मालदीव्स, नाइजीरिया, ब्राजील, उज्बेकिस्तान और किर्गीस्तान शामिल हैं।

 तोपों की सलामी देने की यह परंपरा कहां और कैसे शुरू हुई?

 26 जनवरी, 1950 को, डॉ राजेंद्र प्रसाद ने भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। इसके बाद उन्हें 31 तोपों की सलामी दी गई थी। इसके बाद ही 21 तोपों की सलामी का अंतरराष्ट्रीय मानदंड बन गया। साल 1971 के बाद, 21 तोपों की सलामी हमारे राष्ट्रपति और अतिथि राष्ट्राध्यक्षों को दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान बन गया। भारत में सबसे पहले 21 तोपों से सलामी महात्मा गांधी के अंतिम संस्कार के दौरान दी गई थी।

तब तक राजकीय सम्मान से अंतिम संस्कार के नियम नहीं बने थे। भारत में जब किसी को राजकीय सम्मान दिया जाता है, तब भी 21 तोपों की सलामी दी जाती है।

भारत में गणतंत्र दिवस के अलावा तोपों का इस्तेमाल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर, 15 जनवरी को सेना दिवस पर, 30 जनवरी को शहीद दिवस पर और राष्ट्रपति भवन में दूसरे देशों के प्रमुखों के स्वागत में किया जाता है।

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 सलामी देने का प्रोसेस कौन पूरा करता है?


 21 तोपों की सलामी सेना की विशेष रेजीमेंट देती है। पारंपरिक रेजिमेंट का मुख्यालय मेरठ में है और इसमें करीब 122 जवान शामिल होते हैं। हालांकि, यह स्थायी रेजीमेंट नहीं होती है। जैसे ही ये रेजीमेंट कहीं दूसी जगह शिफ्ट होती है, तो उसकी जगह दूसरी रेजीमेंट ले लेती है।

 क्या तोप से फायर होने वाला गोला असली होता है?


 इस तोप से छोड़े जाना वाला गोला विशेष किस्म का बना होता है। इसे स्पेशल सेरोमोनियल कार्टरेज कहा जाता है। यह ब्लैंक होता है। इसमें केवल धुआं और आवाज आती है। इससे कोई नुकसान नहीं पहुंचता है।

स्वतंत्रता दिवस पर होने वाली 21 तोपों की सलामी में 1940 से भारतीय सेना में शामिल 25 पाउंड ब्रिटिश गन भी रहेंगी, जिन्हें 1992 में डीकमीशन करने के बाद सेरेमोनियल बैटरी के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। यह पहली बार है जब ये गन आधुनिक ATAGS के साथ मिलकर सलामी देंगी।

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